Aabhaar

First time posting something by Shiv Mangal Singh Suman, the poet who stood out from all other’s in the pragatisheel school of poetry. So here goes aabhaar:

जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग ड़ग, लम्बी मंजिल, तय कर लेना कुछ खेल नही।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद।
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।

साँसो पर अवलम्बित काया, जब चलते चलत चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद,
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद,
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर।
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद।
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।

Intesaab

So i’m back after long. And this time with Urdu again. Faiz ahmed faiz’s Intesaab. No words required to describe it. And the words remind me of India and Delhi and i’m sure would remind any Pakistani of Lahore. The words make a lot of things boundaryless. So here is something from across the border:

आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
आज का ग़म कि है ज़िन्दगी के भरे गुलसिताँ से ख़फ़ा
ज़र्द पत्तों का बन
ज़र्द पत्तों का बन जो मेरा देस है
दर्द का अंजुमन जो मेरा देस है
किलर्कों की अफ़सुर्दा जानों के नाम
किर्मख़ुर्दा दिलों और ज़बानों के नाम
पोस्ट-मैनों के नाम
तांगेवालों के नाम
रेलबानों के नाम
कारख़ानों के भोले जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ, वालि-ए-मासिवा, नएबुल्लाह-ए-फ़िल-अर्ज़, दहकाँ के नाम

जिस के ढोरों को ज़ालिम हँका ले गये
जिस की बेटी को डाकू उठा ले गये
हाथ भर ख़ेत से एक अंगुश्त पटवार ने काट ली है
दूसरी मालिये के बहाने से सरकार ने काट ली है
जिस के पग ज़ोर वालों के पाँवों तले
धज्जियाँ हो गयि है

उन दुख़ी माओं के नाम
रात में जिन के बच्चे बिलख़ते हैं और
नींद की मार खाये हुए बाज़ूओं से सँभलते नहीं
दुख बताते नहीं
मिन्नतों ज़ारियों से बहलते नहीं

उन हसीनाओं के नाम
जिनकी आँखों के गुल
चिलमनों और दरिचों की बेलों पे बेकार खिल खिल के
मुर्झा गये हैं
उन ब्याहताओं के नाम
जिनके बदन
बेमोहब्बत रियाकार सेजों पे सज सज के उकता गये हैं
बेवाओं के नाम
कतड़ियों और गलियों, मुहल्लों के नाम
जिनकी नापाक ख़ाशाक से चाँद रातों
को आ आ के करता है अक्सर वज़ू
जिनकी सायों में करती है आहो-बुका
आँचलों की हिना
चूड़ियों की खनक
काकुलों की महक
आरज़ूमंद सीनों की अपने पसीने में जलने की बू

पड़नेवालों के नाम
वो जो असहाब-ए- तब्लो-अलम
के दरों पर किताब और क़लम
का तकाज़ा लिये, हाथ फैलाये
पहुँचे, मगर लौट कर घर न आये
वो मासूम जो भोलेपन में
वहाँ अपने नंहे चिराग़ों में लौ की लगन
ले के पहुँचे जहाँ
बँट रहे थे घटाटोप, बे-अंत रातों के साये
उन असीरों के नाम
जिन के सीनों में फ़र्दा के शबताब गौहर
जेलख़ानों की शोरीदा रातों की सर-सर में
जल-जल के अंजुम-नुमाँ हो गये हैं

आनेवाले दिनों के सफ़ीरों के नाम
वो जो ख़ुश्बू-ए-गुल की तरह
अपने पैग़ाम पर ख़ुद फ़िदा हो गये हैं

Sufi

I was at home this whole week, and managed to browse through my old collection of cassettes. Yes, cassettes are the same plastic objects which were used for storing audio in the last century. Anyways, the collection reminded me of my long lost favorites like – Sufi music. I used to like it a lot … voices of Abida Parveen and Shubha Mudgal … and lyrics by Khusrau, Manzoor Alam, Taji, Kabir. I suddenly fell in love with them again and spent the whole day listening to them. I’m posting a Persian song by khusrau and a Hindi one by Zaheen Shah Taji that I liked the most:

chonani dar nazar nazzaare gaan raa,
ke ronagh beshkani mahpare gaan raa.

[Your lovers behold your limitless beauty so as to make a thousand idols fade away]

to dar khaabe khosho man bhi to har shab,
shomaram taa sahar sayyare gaan raa.

[As I see you lost in the darkness of night, I count the stars till dawn (as if they were you)]

The Hindi one…

मै होश में हूँ तो तेरा हूँ, दीवाना हूँ तो तेर हूँ,
हूँ राज़ अगर तो तेरा हूँ, अफ़साना हूँ तो तेरा हूँ॥
[ अफ़साना == a popular story, a legend ]

बरबाद किया बरबाद हुआ, आबाद किया आबाद हुआ,
वीरानां हूँ तो तेरा हूँ, काशाना हूँ तो तेरा हूँ॥
[ काशाना == a flourishing abode, a garden ]

इस तेरी तजल्ली के क़ुर्बाँ, क़ुर्बान-ए-तजल्ली हर उनवाँ,
मैं शमा भी हूँ तो तेरा हूँ, परवाना हूँ तो तेरा हूँ॥
[ तजल्ली == light ] [ क़ुर्बान-ए-तजल्ली == dedication to eternal light or god ]
[ उनवाँ == path, used here as ways of worship ]

तू मेरी कैफ़ की दुनिया है, तू मेरी मस्ती का आलम,
पैमाना हूँ तो तेरा हूँ, मयखाना हूँ तो तेरा हूँ॥
[ कैफ़ == intoxication ]

हर ज़र्रा ज़हीन की हस्ती का तस्वीर है तेरी सर-ता-पा,
ओ काबा-ए-दिल ढाने वाले, बुतखाना हूँ तो तेरा हूँ॥
[ ज़र्रा == dust ] [ हस्ती == existence ]
[ सर-ता-पा == head to feet ] [ बुतखाना == temple ]

The above songs are from the album based on the Jahan-e-Khusrau concert. The album is called “The Realm of the Heart”.