First time posting something by Shiv Mangal Singh Suman, the poet who stood out from all other’s in the pragatisheel school of poetry. So here goes aabhaar:
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग ड़ग, लम्बी मंजिल, तय कर लेना कुछ खेल नही।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद।
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसो पर अवलम्बित काया, जब चलते चलत चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद,
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।
जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?
मैं भी न चलूँ यदि तो क्या राही मर लेकिन राह अमर।
इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद,
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।
कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?
कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर।
आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद।
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद।