Iqbal Again – Lab Pe Aati Hai Dua

After the previous post, I did substantial research on Iqbal. And read a few of his works available on the net. I am surely going to buy a book now. But here’s one more great nazm by him:

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सुरत हो खुदाया मेरी

हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मुहब्बत या रब

हो मेरा काम गरीबों की हिमायत करना
दर्दमदों से ज़इफों से मुहब्बत करना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझको

[ ज़ीनत == beauty/decoration ] [ इल्म == knowledge/education ] [ ज़इफों == old and weak ]

Iqbal

I never really got into reading much of Allama Iqbal. I knew that he’s the one who gave us the legendary “Saare jahaan se accha” and “ab tak magar hai baki naam-o-nishaan hamara“. My blog will tell you that I love Faiz, and almost any musical thing remotely Pakistani 🙂 … but Iqbal somehow never appealed to me. Untill the day before yesterday, when I heard “Kabhi ai haqeeqat-e-muntazar…”. By far the best modern “Sufi” composition, that I’ve read. The God is referred and not referred. It is a prayer and not a prayer. It is about love, and not about love. It is well, out-standing.

As Faiz would have said – “Jo Gayab Bhi Hai, Hazir Bhi. Jo Manzar Bhi Hai, Nazir Bhi”.

Here it goes:

कभी ऐ हक़िक़त-ए-मुन्तज़र, नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं, मेरी जबीन-ए-नयाज़ में

[ हक़िक़त-ए-मुन्तज़र is long-awaited reality ] [ लिबास == attire ] [ मजाज़ == material ] [ सजदे == prostrations of prayer ] [ जबीन == forehead ] [ नयाज़ == expectant / needy ]

तू बचा बचा के न रख इसे, तेरा आईना है वो आईना
कि शिक़स्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईनासाज़ में

[ शिक़स्ता == broken ] [ अज़ीज़तर == preferred ] [ निगाह-ए-आईनासाज़ == eyes of the mirror-maker ]

ना कहीं जहाँ में अमाँ मिली, जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली
मेरे ज़ुर्म-ए-ख़ानाख़राब को, तेरे अज़ो-ए-बंदा-नवाज़ में

[ अमाँ == refuge ] [ ज़ुर्म-ए-ख़ानाख़राब == wretched sins ] [ अज़ो-ए-बंदा-नवाज़ == (gracious) forgiveness ]

ना वो इश्क़ मे रही गर्मियाँ, ना वो हुस्न मे रही शोख़ियाँ
ना वो गज़नवी मे तड़प रही, ना वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ में

[ गज़नवी == Mahmud Ghaznavi, a dominant ambitious ruler ] [ ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ == hair-locks of Ayaz, Ayaz means slave – but her it refers to Malik Ayaz ]

जो मैं सर-बा-सजदा हुआ कभी, तो ज़मीन से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम आशना, तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में

[ सर-बा-सजदा == head held is prostration ] [ सदा == voice / call / echo ] [ आशना == lover ]

… and I have four different renditions, in four different compositions to share. Here they are:

Ibrar Ul Haq

Nusrat Fateh Ali Khan

Ghulam Ali

Rahat Fateh Ali Khan