आसमान का रंग बदल रहा था।
रात कच्ची पड़ रही थी।
कोई पंच्छी पास के पेड़ से उड़ा,
और सुबह को लाने आसमान की तरफ़ निकल गया।
वह पुल के उस किनारे पर आकर खड़ी हो गयी,
जहाँ से अगला कदम,
ज़िन्दगी का आखरी कदम था।
एक भोले-भाले भेड़ के बच्चे ने उसे रोक लिया।
गड़रिये भटकी हुई भेड़ों को राह दिखाते हैं।
ईसा भी यही करते थे।
उसका हाथ पकड़ कर वह उसे अपने घर ले गया।
अरे! ताल से पानी सुखा है,
आसमान तो नहीं सुख गया?
फिर मेघ आएगा,
फिर जल भरेगा,
चल …
[Words: By Gulzar, from the song “Jal Bhar De”, in the album “Sunset Point”. You can listen to the entire song here]
[Image: Taken at Khajiyaar, Himachal Pradesh, 2006]
* And obviously the header image of Images and Words is clipped out of this image.