After the previous post, I did substantial research on Iqbal. And read a few of his works available on the net. I am surely going to buy a book now. But here’s one more great nazm by him:
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सुरत हो खुदाया मेरी
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मुहब्बत या रब
हो मेरा काम गरीबों की हिमायत करना
दर्दमदों से ज़इफों से मुहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझको
[ ज़ीनत == beauty/decoration ] [ इल्म == knowledge/education ] [ ज़इफों == old and weak ]