The unsaid…

Another self-composed one, after a while. Actually wrote this one sometime back. But somehow found today an appropriate time to post. Also, have been a bit busy lately.

So here’s the gazal:

तुम नही तो और कोई चल रहा है संग,
कश्ती के लिए कब रुकी नदी की है तरंग।

न पूछो उसका नाम जो हुई फ़िज़ा मे गुम
मान लो कि दिल मे छुपी थी कोई उमंग।

कि भूल जाऊँ या संजोऊँ ख़्वाब वह हँसीन
बढ़ूँ तो किस तरफ़ कहो कि रास्ते हैं तंग।

ज़िन्दगी के ये सवाल देखकर के अब
दिल-ओ-दिमाग़ मे छिडी है जैसे कोई जंग।

रंग खिल उठे जो सुने हमने वो जवाब
खुशी के हैं कि गम के पता किसके है वो रंग।

वो कहते हैं न उनके लिए ग़म करे कोई
गम बिना भी है कोई क्या ज़िन्दगी का ढ़ंग।

Mein Ab

Still another self-composed gazal. I wrote this yesterday night. An unusual ‘radiif’ and an unusual mood, started to wander into philosophy but somehow got pulled back to love. That Happens, Also in real life.

So here it is:

क्यों भीगती न रुह मेरी है बारिशों में अब
मिट चुके से रंग सब है ख़्वाहिशों में अब

जो गुज़र गया वो मोड कुछ इस कदर मुडा
दिल लगे ना ज़िन्दगी की साज़िशों में अब

वो वक़्त था कि बुत ड़हे मेरे कलाम से
न शोर है न ज़ोर कुछ गुज़ारिशों में अब

इस कदर सुकून में मेरा वजूद है
हो पाख़ियों की फ़ौज जैसे गर्दिशों में अब

भा गया है इस कदर कोइ हसीँ मुझे
कि लुत्फ़ है अजीब सा ये बंदिशों में अब

हर एक बात उस हसीँ कि छेड़ती है यूँ
पुरज़ोर मन लगा है रोज़ रंजिशों में अब

Dekhakar

Its time for another self-composed one. The first two and the last sher were written years ago. I added the middle ones recently, while I was on a bus trip to Pune and was getting bored. So here’s the gazal:

कहता हूँ गज़ल मेहफ़िल वीरान देखकर,
कहूँ तो क्या कहूँ ये कदरदान देखकर।

उस राह पर हज़ारों कदम पड़ रहे हैं आज,
छोड़ी थी हमने जो कभी, आसान देखकर।

मचल रही ये बिजलियाँ, ये अब्र, ये ज़मीन,
तुझे देख ड़गमगा मेरा ईमान देखकर।

बहर बढ़ा नदी की ओर, साहिलों को तोड़,
मेरे वजूद को माशूख़ पे कुर्बान देखकर।

कुछ कह रही तेरी नज़र नशे में गर्द सी,
कुछ कहने से रुकी मेरी ज़ुबान देखकर।

इन आँखो पे कहे शेर भी भुला रहा हूँ मैं,
इन आँखो में तेरी हुस्न का ग़ुमान देखकर।

ख़्वाहिश न रही दिल में कोई जी रहा हूँ बस,
हसरत भरे हुज़ूर के अरमान देखकर।